Social and Political
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यह उपन्यास हर उस माँ, बाप, भाई, बहन, सास, ससुर, पति, पत्नी, दोस्त, और प्रेमी की कहानी है जो नोटबंदी के समय लाइन में लगा हुआ खुद को असहाय सा महसूस कर रहा था! उस वक्त वह व्यक्ति खुद ही की बनायीं इस मकड़जाल जैसी राजनैतिक व्यवस्था से अपने आत्मसम्मान एवम संवेदनाओ को चोटिल होता हुआ अनुभव कर रहा था! उस व्यक्ति की संवेदनाएं कुछ इस प्रकार चोटिल होकर बेबस थी की वह कराह रहा था परंतु चुप्पी साधे हुए! चुप्पी तोड़ने पर मुँह से निकली आवाज़ उसे देशद्रोही साबित करने के लिए बेहद उत्सुक और प्रचंड मालूम पड रही थी! इन्ही सब खट्टे-मीठे अनुभवो का संकलन कर उस जटिल समय को एक कहानी में रूपांतरित कर पाठको तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है “नोटबंदी” के इस उपन्यास में!
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