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दिल्ली जो देश की राजधानी है और न्याय का सर्वोच्च आशियाना भी, साथ ही आखरी उम्मीद भी! यहाँ देश से ही नहीं दुनिया भर से लोग आते है और अपने खट्टे मीठे अनुभव साथ ले जाते है! इनमे कुछ अनुभव अमेरिका के रक्षा मंत्री जॉन कैरी के तरह विदेशो में पहुंचते है और कुछ अखबारों , न्यूज़चैननलो और अन्य अंतर्राष्ट्रीए इकाइयो के माध्यम से! दिल्ली में देश भर के सैकड़ो नेताओ का भी रोज़ आना जाना होता है, केजरीवाल और कन्हैया कुमार जैसे नेता बनते भी है, और न जाने हर रोज़ कितने गिरफ्तार भी होते है! देश के बेहतरीन विश्विद्यालय जैसे की जे. न. यू., डी. यू., और आई. आई. टी. भी यहाँ है, जिसका मतलब हुआ की यहाँ से बढ़िया डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, ब्यूरोक्रेट, और राजनितिज्ञ भी ज़रूर बनते है! यह तो बात हुई शानदार, दिलचस्प, और कामयाब दिल्ली की, पर क्या यही वास्तविकता भी है? क्योंकि इतना सबकुछ समेटने वाली दिल्ली का सीना तब छलनी हो जाता है जब उसकी किसी बेटी पर अत्याचार होता है! हुआ इस बार भी कुछ ऐसा ही है जिसने मुझे लिखने पर मज़बूर कर दिया, क्योंकि एक बेटी को चाकुओ से गोदा जा रहा था और कोई मदद को सामने नहीं आ रहा था! अगर किसी ने आने की कोशिश की भी तो उसका साथ कोई न दे रहा था! जब दिन दिहाड़े इतना कुछ हो रहा था तो क्या लोकतंत्र के इस घर में इंसानियत पर केवल विमर्श हो रहा था?
लगता तो कुछ ऐसा ही है, की मानव मूल्य और इंसानियत केवल अब किताबो में ही सिमित रह गयी है, और ज्यादा ही हुआ तो फेसबुक पर लाइक! दिल्ली में जो हुआ उसको तो नहीं बदल सकता लेकिन आप लोगो को कुछ किस्से बता सकता हूँ जो शायद मानव मूल्यों की तरफ बढ़ने में आपको कुछ प्रेरित करे! घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है की मैं अपने संस्थान से निकल कर रोहतक-दिल्ली राजमार्ग पर कुछ दूर तक ही पहुंचा था और देखता हूँ कि दो युवक ट्रैफिक पुलिस बने हुए है! एक ट्रैफिक को डाइवर्ट कर रहा है और दूसरा कुदाल लेकर किनारे पर गड्ढा खोद रहा है, मुझे भी थोड़ा अचरज हुआ और मैंने सोचा की क्या मै कोई स्वपन देख रहा हूँ? क्योंकि आज के युवा को व्हाट्सएप्प, फेसबुक, और न जाने क्या-क्या से ही फुरसत नहीं मिलती, वैसे समय दिन का था नहीं तो शायद मै इसको लूट का कोई नया तरीका भी समझ सकता था! हालाँकि जब मै नज़दीक पहुंचा तो मैंने पाया कि मै बिलकुल गलत था और मेरा द्रष्टिकोण भी! क्योंकि वह दोनों युवक उस वक्त एक बिल्ली जो की सड़क हादसे का शिकार हो गयी थी उसको दफ़न करने की तैयारी कर रहे थे! किसी सड़क हादसे में कुत्ते, बिल्ली, बन्दर, गायें, और यहाँ तक की आदमियों का भी मर जाना कोई नयी बात नहीं है बल्कि उनको मार कर भाग जाने वालो के लिए भी वह मात्र एक घटना होती है! परंतु उन युवको का एक बिल्ली के प्रति इस प्रकार का प्राणिमात्र के लिए प्रेम का भाव मेरे जीवन में किसी अद्वित्य घटना से कम नहीं था! इस घटना ने न केवल आज के युवाओं के प्रति मेरे द्रष्टिकोण को बदला है बल्कि एक लगभग धूमिल हो चुकी उम्मीद की किरण को भी जगाया है!
एक अन्य वृतांत भी आपको बताना चाहूंगा जिसका अनुभव आज भी मुझे भाव विभोर कर देता है, और मन ही मन मुस्कुरा उठता हूँ! एक बार मै अपनी कुछ साथियो के साथ रेलगाड़ी से उत्तर से दक्षिण भारत जा रहा था, जैसा की आपको पता ही है सफर भी नाम की तरह ही लंबा था और हमे लगभग 50 घंटे तक रेलगाड़ी में रहना था! हमारे डिब्बे में एक दम्पत्ति अपने छोटे बच्चे के साथ यात्रा कर रहे थे, सफर इतना लंबा था की स्वाभाविक रूप से बच्चा बार बार कुछ खाने की जिद करता था और अन्य किसी माता पिता की तरह उसके माता पिता भी उसको कुछ खिला देते, ऐसा ही कुछ हम भी कर रहे थे मतलब खाना-पीना! लेकिन उनकी एक आदत हमसे बिलकुल भिन्न थी वो यह की वो समाज के कुछ बेहद जिम्मेदार लोग और हम उनसे कुछ पीछे ऐसा कहूँ तो कोई अतिशयोक्ति न होगी! क्योंकि खाने के बाद जो कूड़ा हम रेलगाड़ी से बाहर इधर उधर फेक रहे थे वही कूड़ा वो अपनी एक थैली में इक्कठा कर रहे थे और जैसे ही रेलगाड़ी रूकती थी कूड़े की उस थैली को स्टेशन पर रक्खे कूड़ेदान में खाली कर आते थे, यह देख कुछ समय बाद हमे भी शिक्षा और शर्म दोनों आयी और हमने भी अपनी खिड़की पर कूड़े की एक थैली लटकाई जिसे देख वह परिवार इशारो में हमसे बोला कि “यदि हम सब समझ जाएं ऐसे, तो सपने क्यों न हो जाये हकीकत जैसे”! अतः अंततः उक्त घटनाओ के वर्णन से मेरा आशय यही है कि यदि हम अपने समाज एवम राष्ट्र के प्रति थोड़े भी सजग है तो किसी भी प्रकार के स्वार्थ से दूर रहकर अपनी क्षमता अनुसार लोकहित में निरंतर कार्ये करते रहे! और इस देश में मानव मूल्यों की धरोहर को संचित एवम सृजित करके इसे गौरवान्वित करें, जिसमे राजा राममोहन राय, महात्मा गाँधी, एवम अम्बेडकर जैसे अनेको महापुरुषों के प्राणों की आहुति समिल्लित है!
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